600 Elephant Died in Odisha and West Bengal Since From 2019

 ओडिशा और पश्चिम बंगाल में 2019 से अब तक 600 हाथियों की मौत, विशेषज्ञ बोले - राज्यों को एक साथ आकर ज़ोन-आधारित समाधान अपनाना चाहिए

मुख्य बिंदु:

  1. जांच के आदेश: ओडिशा में हाथियों की मौत की बढ़ती घटनाओं पर वन मंत्री गणेश राम सिंहखुंतिया ने जांच के आदेश दिए।
  2. मौत का आंकड़ा: 2019 से 2024 तक, ओडिशा में 483 और बंगाल में 116 हाथियों की मौत हुई है, जिनमें से कई मौतें असामान्य कारणों जैसे करंट लगना, सड़क और ट्रेन दुर्घटनाओं के कारण हुई।
  3. संरक्षण प्रयास: दोनों राज्यों में हाथी-संरक्षण योजनाओं के तहत विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे कि फेंसिंग, ड्रोन निगरानी, और 'गजा साथी' जैसे स्थानीय स्वयंसेवकों की मदद।
  4. विशेषज्ञ की राय: वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अरीत्रा क्षेत्री ने राज्यों को क्षेत्रीय विभाजन (ज़ोनेशन) के आधार पर समाधान अपनाने की सलाह दी है ताकि हाथियों और मनुष्यों के बीच संघर्ष को कम किया जा सके।


पूरी खबर:

ओडिशा और पश्चिम बंगाल में मानव-हाथी संघर्ष और हाथियों की मौत की लगातार बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता जताई गई है। ओडिशा के वन मंत्री गणेश राम सिंहखुंतिया ने राज्य में हाथियों की असामान्य मौतों की जांच के आदेश दिए हैं, जिसमें प्रमुख सचिव सत्यब्रत साहू को एक माह के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। इस वर्ष अक्टूबर तक, ओडिशा में 76 जंगली हाथियों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 56 मौतें पिछले छह महीनों में हुई हैं।

2019 से 2024 (अक्टूबर तक) के दौरान, ओडिशा में 483 और पश्चिम बंगाल में 116 हाथियों की मौत हुई है। इन मौतों में 208 हाथी (ओडिशा) और 50 हाथी (बंगाल) असामान्य कारणों से मारे गए हैं, जैसे कि करंट लगना, सड़क और ट्रेन दुर्घटनाएँ या जानबूझकर की गई हिंसा। ओडिशा में सबसे ज्यादा मौतें ढेंकानाल, अनुगुल और क्योंझर में दर्ज की गई हैं, जबकि बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व और गोरुमारा वन्यजीव क्षेत्र में यह घटनाएँ अधिक हुई हैं।

हाथियों के संरक्षण के लिए ओडिशा में विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं, जिनमें जंगली वन क्षेत्रों में चारा उत्पन्न करने, जलाशयों का निर्माण करने और आग से बचाव के उपाय शामिल हैं। संवेदनशील क्षेत्रों में वन्यजीव सुरक्षा दस्तों की तैनाती भी की गई है। इसके साथ ही रैपिड रिस्पांस टीमें भी बनाई गई हैं ताकि हाथियों के हमले की स्थिति में त्वरित कार्रवाई की जा सके। कुछ जगहों पर ड्रोन का उपयोग कर हाथियों की निगरानी की जा रही है, और 'गजा साथी' जैसे स्वयंसेवकों की सहायता से हाथी संघर्ष वाले इलाकों में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।

बंगाल में भी इसी तरह के प्रयास किए जा रहे हैं, जहाँ 2016 में हाथियों के आंदोलनों की निगरानी के लिए ‘एलीफेंट मूवमेंट कोऑर्डिनेशन कमेटी’ बनाई गई थी। यहाँ रैपिड रिस्पांस टीमों की सहायता से हाथी संघर्ष वाली स्थितियों में त्वरित कदम उठाए जाते हैं और लोगों को एसएमएस अलर्ट के जरिए सतर्क किया जाता है।

विशेषज्ञ की राय:

वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड इंडिया के राष्ट्रीय प्रमुख-अरीत्रा क्षेत्री का मानना है कि मानव-हाथी संघर्ष वाले राज्यों को एक साथ आकर इस समस्या का क्षेत्रीय दृष्टिकोण से समाधान खोजना चाहिए। उनका सुझाव है कि इलाके को चार ज़ोन में विभाजित किया जाना चाहिए: एक संरक्षण क्षेत्र, जहाँ हाथी स्वतंत्र रूप से घूम सकें; दूसरा क्षेत्र, जो एक जंगल को दूसरे से जोड़ने के लिए कॉरिडोर के रूप में हो; तीसरा क्षेत्र, जहाँ हाथी और इंसान सह-अस्तित्व में रह सकते हैं, जैसे कि चाय या कॉफी के बागान; और चौथा क्षेत्र, जो हाथियों के लिए पूरी तरह से निषिद्ध हो।

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