बुलडोजर न्याय अस्वीकार्य: मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ का अंतिम फैसला
मुख्य बिंदु:
- सेलेक्टिव बुलडोजर कार्रवाई को दंडात्मक माना जाए, संबंधित राज्य अधिकारियों पर अनुशासनात्मक और आपराधिक कार्रवाई हो।
- न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिकों की आवाज को संपत्ति नष्ट करने की धमकी से नहीं दबाया जा सकता।
- अदालत ने कहा, राज्य द्वारा कोई भी संपत्ति जब्ती का कदम उचित प्रक्रिया के बिना नहीं होना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने अंतिम फैसले में सेलेक्टिव बुलडोजर कार्रवाई पर कड़ी चेतावनी दी और इसे अनुचित करार देते हुए कहा कि राज्य अधिकारी अगर इसमें शामिल पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक और आपराधिक कार्रवाई होनी चाहिए। चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसी कार्रवाई कानून के शासन के अंतर्गत अस्वीकार्य है, और नागरिकों की संपत्ति को बिना उचित प्रक्रिया के नष्ट नहीं किया जा सकता।
नागरिक अधिकारों का संरक्षण जरूरी
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में कहा गया, "नागरिकों की आवाज संपत्तियों को नष्ट करने की धमकी से दबाई नहीं जा सकती। घर का सुरक्षा अधिकार मौलिक है, जो राज्य द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए।"
चंद्रचूड़ के मुताबिक, ‘बुलडोजर न्याय’ किसी भी सभ्य कानून प्रणाली में स्वीकार्य नहीं है, और अगर राज्य इसे बढ़ावा देता है, तो इससे नागरिकों के अधिकारों का हनन होता है।
संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता न्यायालय ने राज्य अधिकारियों को उचित प्रक्रिया का पालन करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति का अधिकार मान्यता प्राप्त है, और अगर बुलडोजर न्याय की अनुमति दी जाए, तो यह अधिकार मृत हो जाएगा।
सार्वजनिक जवाबदेही की मांग सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्य अधिकारियों को उनकी अवैध कार्रवाई के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य की कोई भी कार्रवाई सार्वजनिक या निजी संपत्ति के संदर्भ में कानूनन प्रक्रिया के बिना नहीं होनी चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के महाराजगंज में एक घर की 2019 में हुई कथित अवैध ढहाने की कार्रवाई के मामले में इस आदेश को जारी किया। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का यह निर्णय उनके न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्ति से पहले का अंतिम फैसला है।