नवरात्रि के दौरान सुप्रीम कोर्ट की कैंटीन में मांसाहारी भोजन को लेकर विवाद
मुख्य बिंदु:
- नवरात्रि के दौरान सुप्रीम कोर्ट की कैंटीन में मांसाहारी भोजन की बहाली पर विवाद
- एक वर्ग के वकीलों ने इस फैसले को "भावनाओं की अनदेखी" करार दिया
- मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध हटाने के विरोध में बार एसोसिएशन को पत्र
सुप्रीम कोर्ट की कैंटीन में मांसाहारी भोजन सेवा की बहाली के बाद, नवरात्रि के समय एक वर्ग के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और अन्य कानूनी संगठनों से संपर्क किया, यह कहते हुए कि यह निर्णय "अन्य लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखे बिना" लिया गया है।
नवरात्रि, नौ दिनों का हिंदू पर्व है, जिसे देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस दौरान, वरिष्ठ वकील रजत नायर ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) को एक पत्र लिखकर नवरात्रि के दौरान मांसाहारी भोजन सेवा की बहाली पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने आरोप लगाया कि यह निर्णय "बार के अन्य सदस्यों की भावनाओं" को ध्यान में रखे बिना लिया गया था।
नायर के इस पत्र को शीर्ष अदालत में प्रैक्टिस करने वाले कम से कम 133 वकीलों का समर्थन मिला। पत्र में कहा गया कि यह निर्णय बार की "बहुलवादी परंपराओं" के अनुरूप नहीं है और एक-दूसरे के प्रति असहिष्णुता और "सम्मान की कमी" दिखाता है।
इससे पहले, मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध हटाने के बाद यह विवाद तब शुरू हुआ, जब वकीलों के एक अन्य वर्ग ने नवरात्रि के दौरान मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध लगाने का विरोध किया। 1 अक्टूबर को, वकीलों के एक वर्ग द्वारा विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट की कैंटीन में मांसाहारी भोजन परोसने की अनुमति दी गई थी।
नवरात्रि के दौरान मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल को लिखे एक पत्र में, वकीलों ने कहा कि मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध का निर्णय "अभूतपूर्व" था और यह "भविष्य के लिए एक बहुत गलत मिसाल" स्थापित करेगा।
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वकीलों के एक वर्ग के विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट की कैंटीन में मांसाहारी भोजन की सेवा फिर से शुरू कर दी गई।