कोलकाता हॉरर: पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष को लापरवाही के आरोपों पर IMA ने निलंबित किया
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने कोलकाता के आरजी कर अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष को इस महीने की शुरुआत में एक डॉक्टर की बलात्कार और हत्या के मामले में लापरवाही के आरोपों के बाद निलंबित कर दिया है।
डॉ. घोष, जिनसे इस मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने पूछताछ की थी और जिन्होंने सोमवार को लाई-डिटेक्टर टेस्ट भी दिया था, पर आरोप है कि उन्होंने डॉक्टर का शव मिलने पर उचित कार्रवाई नहीं की, जिसमें पुलिस में शिकायत दर्ज न कराना शामिल है। हालांकि, उन पर हत्या का प्रत्यक्ष आरोप नहीं है, लेकिन डॉ. घोष पर भ्रष्टाचार से जुड़े गैर-जमानती आरोप हैं।
Image Source - AP7AMरिपोर्ट्स के अनुसार, आरजी कर अस्पताल में भ्रष्टाचार के आरोप भी सामने आए हैं, जिसमें एक पूर्व कर्मचारी ने डॉ. घोष पर शवों और बायोमेडिकल कचरे की तस्करी का आरोप लगाया है, जिसे इस हत्या से जुड़ा हुआ माना जा रहा है।
CBI ने इस मामले में गहन जांच की है, जिसमें डॉ. घोष के कोलकाता स्थित घर की 11 घंटे की तलाशी भी शामिल है, जिसमें उन्होंने "काफी सबूत" मिलने का दावा किया है। एजेंसी अब तक उनसे लगभग 90 घंटे की पूछताछ कर चुकी है।
IMA ने अपने बयान में मृतक डॉक्टर के माता-पिता की शिकायतों का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने डॉ. घोष पर संवेदनशीलता की कमी का आरोप लगाया। एसोसिएशन ने बंगाल के अन्य डॉक्टरों द्वारा लगाए गए उन आरोपों का भी उल्लेख किया कि डॉ. घोष ने अपने कार्यों से चिकित्सा पेशे की प्रतिष्ठा को धूमिल किया है। इस कारण IMA की अनुशासन समिति ने उन्हें निलंबित करने का फैसला किया है।
डॉ. घोष इस घटना के बाद से विवादों के केंद्र में रहे हैं। घटना के बाद उन्होंने प्रिंसिपल पद से नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया, लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें तुरंत कोलकाता नेशनल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (CNMC) का प्रमुख नियुक्त कर दिया।
इस फैसले से CNMC के कर्मचारियों और मारे गए डॉक्टर के लिए न्याय की मांग करने वालों में जबरदस्त आक्रोश फैल गया। कलकत्ता हाई कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और आदेश दिया कि डॉ. घोष "लंबी छुट्टी" पर जाएं। अदालत ने उनकी त्वरित नियुक्ति पर भी सवाल उठाया, जिसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आलोचकों और प्रदर्शनकारियों के समूहों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार डॉ. घोष को बचा रही है।
डॉ. घोष की भूमिका की सुप्रीम कोर्ट ने भी आलोचना की है, विशेष रूप से शव मिलने के बाद एफआईआर दर्ज करने में देरी को लेकर। अदालत ने सवाल उठाते हुए कहा कि एफआईआर 14 घंटे बाद क्यों दर्ज की गई और कॉलेज के प्रिंसिपल ने तुरंत आकर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश क्यों नहीं दिया?
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अब तक, इस मामले में केवल एक ही गिरफ्तारी हुई है—एक पुलिस स्वयंसेवक संजय रॉय की। इसी बीच, राजनीतिक तनाव बढ़ता जा रहा है, जिसमें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी बीजेपी दोनों ही CBI और राज्य पुलिस की प्रभावशीलता को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। CBI ने अभी तक इस मामले में कोई और गिरफ्तारी नहीं की है।